
दैनिक चालू वार्ता निलंगा प्रतिनिधी -इस्माईल महेबूब शेख
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निलंगा: रोज़ा अल्लाह से ख़ौफ़ और मोहब्बत का सबब तो है ही,अल्लाह का अदब भी है।
•’रोज़ा’ रोशनी की लकीर और नेकी की नज़ीर (मिसाल) है। रमज़ान का तो हर रोज़ा खुशहाली का खजाना और पाकीज़गी का पैमाना है। रमज़ान की बरकतों की तहरीर का ये कारवां माशाअल्लाह आठवें रोजे तक पहुंच गया है।
•दरअसल, रोज़ा अल्लाह का अदब भी है और फ़ज़ल की तलब भी है। सबूत के तौर पर इस बात को क़ुरआने-पाक की आयत के हवाले से बेहतरीन और आसान तरीके से समझा जा सकता है। पवित्र क़ुरआन की सूरह अल-हश्र की आयत नंबर 18 (अठारह) में बयान है- तर्जुमा-‘और अल्लाह से डरो, बेशक अल्लाह को तुम्हारे कामों की ख़बर है।’
इस आयत की रोशनी में ये बात नुमाया (स्पष्ट) हो जाती है कि, अल्लाह (ईश्वर) वसीअ (सर्वव्याप्त) है और अजीम (महान) और अलीम (जानकार) है। अल्लाह को चूंकि हर बात की ख़बर है इसलिए बंदे (भक्त) को यह सोचकर कि अल्लाह की नज़र उसके हर काम (कार्य) पर है, अल्लाह से डरना चाहिए क्यूँकी अल्लाह से डरना ही अल्लाह का अदब है। यहाँ दो बातें खास तौर से समझना जरूरी हैं। यानी किसी का अदब हम दो ही वजहों से करते हैं या तो ‘डर’ से या ‘मोहब्बत’ से।
•अल्लाह (ईश्वर) चूंकि महान और पवित्र (पाकीज़ा) है इसलिए अज़ीम (महान) और पाक़ीजा (पवित्र) से ‘डरना’ दरअसल ‘मोहब्बत’ करना ही है। इसलिए एक रोज़ादार जब रोज़ा रखता है तो उसके दिल में ख़ौफ़े-खुदा होता है, जो उसे रोज़े के अहकाम और अदब से बाँधता है और चूंकि रोज़ा अल्लाह का ही रास्ता है। इसलिए रोज़ा अल्लाह से ख़ौफ़ और मोहब्बत का सबब तो है ही, अल्लाह का अदब भी है।
•अर्श (आसमान) से जब अल्लाह के फ़जल की तलब की जाती है तो रहीम और करीम (दयालु-कृपालु) होने की वजह से अल्लाह रोज़ादार की दुआ सुनता है और मुराद पूरी करता है।
किसी ने कहा भी है-…
“दरे-करीम से बंदे को क्या नहीं मिलता,
जो माँगने का तरीक़ा है,उस तरह माँगो।”